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बुधवार, 14 अप्रैल 2021

५५४. माँ



थोड़ी बहुत माँ दिख जाती है 

बहन में, पत्नी में, हर औरत में,

यहाँ तक कि हर मर्द में भी 

झलक मिल जाती है माँ की. 


इतनी ख़ूबियाँ होती हैं माँ में 

कि किसी भी इंसान में 

माँ का कुछ-न-कुछ न मिलना 

लगभग असंभव है,

वैसे ही जैसे एक ही इंसान में 

पूरी की पूरी माँ का मिलना 

लगभग असंभव है. 


अगर आपको एक ही इंसान में 

पूरी की पूरी माँ को देखना हो,

तो अपने घर जाइए

और अपनी माँ को देखिए.  


12 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-04-2021) को
    "वन में छटा बिखेरते, जैसे फूल शिरीष" (चर्चा अंक- 4038)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  2. माँ तो बस माँ ही होती है, अपना अंश बांटती हुई फिर भी पूर्ण !

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  3. अगर आपको एक ही इंसान में

    पूरी की पूरी माँ को देखना हो,

    तो अपने घर जाइए

    और अपनी माँ को देखिए.

    . बहुत सही बात ... सुन्दर रचना .

    जवाब देंहटाएं
  4. अगर आपको एक ही इंसान में
    पूरी की पूरी माँ को देखना हो,
    तो अपने घर जाइए
    और अपनी माँ को देखिए.

    अक्षरशः सत्य...
    अति सुंदर श्रेष्ठ रचना....🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  5. अगर आपको एक ही इंसान में

    पूरी की पूरी माँ को देखना हो,

    तो अपने घर जाइए

    और अपनी माँ को देखिए.

    सही कहा आपने,माँ की झलक मिल सकती है माँ सिर्फ एक में ही मिलती है,भावपूर्ण सृजन,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर भावपूर्ण सृजन।
    माँ बस माँ ही हो सकती है, कहीं बस कुछ परछाइयां दिखती है, पर पूरी मूरत माँ तेरी तूझ में ही साकार होती है।
    अप्रतिम।

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