शिव,
समय आ गया है
कि तुम गंगा को
फिर से जटाओं में समेट लो.
गंगा ही क्यों,
और भी बहुत सी नदियाँ हैं,
जो मर रही हैं,
तुम्हारी जटाओं की
सुरक्षा चाहती हैं.
शिव,
सब को पनाह दो,
बचा लो मृतप्राय नदियों को
और अपनी जटाओं को
तब तक मत खोलना,
जब तक तुम्हें यक़ीन न हो जाय
कि तुम्हारी जटाओं से निकलकर
नदियाँ सुरक्षित रहेंगी.
हम इंसान तो सब बिगाड़ने का ही काम करते । जो प्राप्त है उसे बेदर्दी से इस्तेमाल कर खत्म होने की कगार पर पहुंचा देते । बहुत सही लिखा है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति द
जवाब देंहटाएंवाह! ओंकार जी सुंदर और सटीक ।
जवाब देंहटाएंभावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंहे शिव सबका कल्याण करो।
नदियों को पुनर्जीवित करना होगा वरना एक दिन वे वाकई लुप्त हो जाएंगी शिव की जटाओं में
जवाब देंहटाएंसही कहा नदियाँ मरती जा रही हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसूखती,सिसकती, नदियों सुंदरके लिए भावों का अनूठा समर्पण ।
जवाब देंहटाएं