एक अकेली कोयल
पेड़ पर बैठी कूक रही है,
किसी को फ़ुर्सत नहीं
कि चुपचाप सुने उसका गीत,
अपने आप में व्यस्त हैं
सभी के सभी.
बस एक चिड़िया है,
जो सामनेवाले पेड़ पर बैठी है,
बंद कर दिया है उसने चहचहाना,
उसे तन्मयता से सुनना है
कोयल का राग.
कोयल सोचती है,
उसे गाते रहना होगा
इंसानों के लिए नहीं,
तो चिड़ियों के लिए ही सही.
सच कहा आपने। जीवन एक सपाट पथ की भांति है, बस बढते जाना है। कोई साथ दे या न दे। इसी में मुक्ति है और यही चक्र भी।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ओंकार जी।
कोयल के माध्यम से कर्म पथ पर चलने की प्रेरणा देती शानदार रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत कमाल के भाव ... अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
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श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
कोयल सोचती है,
जवाब देंहटाएंउसे गाते रहना होगा
इंसानों के लिए नहीं,
तो चिड़ियों के लिए ही सही.
लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
वाह,बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
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