top hindi blogs

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

५५७.रेलगाड़ी



जंगल बहुत घना है,

रात घिर आई है,

सन्नाटा फैला है चारों ओर,

सहमा हुआ है राही. 


अँधेरे को चीरती हुई

पटरियों पर दौड़ी आ रही है 

मुसाफ़िरों-भरी रेलगाड़ी,

उम्मीद जगाती उसकी रौशनी,

सन्नाटा दूर भगाती 

उसकी तेज़ गड़गड़ाहट. 


घने जंगल को बेधती है,

भटके राही को राह दिखा

उसका खोया विश्वास जगाती है

धड़धड़ाकर आती रेलगाड़ी. 



7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सृजन,ये जीवन भी तो एक रेलगाड़ी ही है ,सादर नमन सर

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन की रेलगाड़ी भी कभी घने अंधेरे से निकलती है तो कभी सन्नाटा खत्म करती है । सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रतिकात्मक काव्य सृजन ।

    जवाब देंहटाएं