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गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

५४९.उजड़ी झोंपड़ियाँ

 राग दिल्ली वेबसाइट(https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविता.




इन उजड़ी झोंपड़ियों के आसपास
कुछ टूटी चूड़ियां हैं,
कुछ बदरंग बिंदियाँ हैं,
कुछ टूटे फ्रेम हैं चश्मों के,
कुछ तुड़ी-मुड़ी कटोरियाँ हैं.

यहाँ कुछ अधजली बीड़ियाँ हैं,
कुछ कंचे हैं, कुछ गोटियाँ हैं,
तेल की ख़ाली बोतलों की तलहटी में
देसी शराब की कुछ बूँदें है.

जली फुलझड़ियों के तार हैं,
कुछ टूटे-फूटे दिए हैं,
पक्के रंगोंवाली रंगोली है,
जिसके कई रंग मिट गए हैं.

यहाँ चारपाई की रस्सियाँ हैं,
कुछ ईंटें हैं, जो जुड़ती थीं,
तो पाया बन जाती थीं,
कुछ बुझे हुए चूल्हे हैं,
ठंडी पड़ चुकी राख है.

सभी सबूत मौजूद हैं यहाँ
कि झोपड़ियों में लोग रहते थे,
नहीं हैं तो इस बात के संकेत
कि ये झोपड़ियां उजड़ीं कैसे
और इन्हें उजाड़ा किसने.




6 टिप्‍पणियां:

  1. मन को उद्वेलित करते मनोभावों का जीवंत चित्रण करती हृदयस्पर्शी कृति ।

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  2. सभी सबूत मौजूद हैं यहाँ
    कि झोपड़ियों में लोग रहते थे,
    नहीं हैं तो इस बात के संकेत
    कि ये झोपड़ियां उजड़ीं कैसे
    और इन्हें उजाड़ा किसने.

    बस यही तो समझना नहीं चाहते हमारे तथाकथित नेता ... बहुत मर्मस्पर्शी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी सबूत मौजूद हैं यहाँ
    कि झोपड़ियों में लोग रहते थे,
    नहीं हैं तो इस बात के संकेत
    कि ये झोपड़ियां उजड़ीं कैसे
    और इन्हें उजाड़ा किसने.

    बहुत सही कहा, मर्मस्पर्शी रचना

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