जाड़ों की गुनगुनी धूप
कितनी ममता-भरी है,
जब खड़ा होता हूँ,
तो हाथ रख देती है सिर पर,
सहलाती है गालों को,
जब लेटता हूँ,
तो थपकाती है पीठ,
सुला देती है मुझे.
मैं सपने देखने लगता हूँ,
कहीं और पहुँच जाता हूँ,
भूल जाता हूँ उस धूप को,
जिसने थपकी देकर मुझे सुलाया था.
वाह
जवाब देंहटाएंमंत्रमुग्ध करती भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। बहुत ही बढ़िया। शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजाड़े की धूप का बहुत सुंदर चित्रण ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत एवं मनमोहक छायाचित्र जाड़े की गुनगुनी धूप का..सुन्दर कृति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर, मार्मिक और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंधूप की रेशमी गुनगुनाहट सी रचना
जवाब देंहटाएंवाह कितने जीवंत अहसास है ,
जवाब देंहटाएंशानदार सृजन।
कच्ची , गुनगुनी धूप, सुखद अहसास दिलाएँ बहुत ही बढ़िया
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