बहुत देर हुई,
थम गई है बारिश,
पर बूँदें हैं
कि चिपकी हैं पत्तों से.
उन्हें नहीं पता
कि उन्हें उतरना ही होगा,
मिलना ही होगा मिट्टी में,
हारना ही होगा
धूप से, हवा से.
बूँदें नहीं जानतीं
कि इतना ज़्यादा लगाव
नहीं सुहाता किसी को
किसी का, किसी से.
वाह
सुंदर मनोहारी अभिव्यक्ति से लबरेज़ नायाब कृति..
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2022...वक़्त ठहरता नहीं...) पर गुरुवार 28 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
लाजवाब, अति उत्तम शुभप्रभात नमन हरि ओम शरणम्
बहुत सुन्दर।
बहुत सुन्दर।कम शब्दों में गहरी बात।
ग़ज़ब। बहुत गहरी बात।
बूँदें नहीं जानतीं कि इतना ज़्यादा लगाव नहीं सुहाता किसी को किसी का, किसी से...वाह!बहुत ही सुंदर सर।सादर
नमस्कार ओंकार जी, बूंंद के माध्यम से बहुत खूब लिखा...कि अति सर्वत्र वर्जयेत् ...
उन्हें नहीं पताकि उन्हें उतरना ही होगा,मिलना ही होगा मिट्टी में,हारना ही होगा धूप से, हवा से. बहुत सुंदर।
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर मनोहारी अभिव्यक्ति से लबरेज़ नायाब कृति..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2022...वक़्त ठहरता नहीं...) पर गुरुवार 28 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलाजवाब, अति उत्तम शुभप्रभात नमन हरि ओम शरणम्
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहरी बात।
ग़ज़ब। बहुत गहरी बात।
जवाब देंहटाएंबूँदें नहीं जानतीं
जवाब देंहटाएंकि इतना ज़्यादा लगाव
नहीं सुहाता किसी को
किसी का, किसी से...वाह!बहुत ही सुंदर सर।
सादर
नमस्कार ओंकार जी, बूंंद के माध्यम से बहुत खूब लिखा...कि
जवाब देंहटाएंअति सर्वत्र वर्जयेत् ...
उन्हें नहीं पता
जवाब देंहटाएंकि उन्हें उतरना ही होगा,
मिलना ही होगा मिट्टी में,
हारना ही होगा
धूप से, हवा से.
बहुत सुंदर।