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शनिवार, 6 मार्च 2021

५४२. बंधन


वे जो पराये लगते थे,

दूर नहीं हैं,

वे जो सख्त लगते थे,

पत्थर नहीं हैं,

वे जो चुप रहते थे,

गूंगे नहीं हैं,

वे जो अनदेखा करते थे,

अंधे नहीं हैं.


ध्यान से देखो,

किसी और ने नहीं 

बाँध रखा है 

तुमने ख़ुद को.


खोल दो बंधन,

फैला दो बाहें,

फिर देखो, 

कैसे बदल जाती है 

तुम्हारी यह बदरंग दुनिया?

11 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. वा‍ि क्या बात कही है ओंकार जी, ध्यान से देखो,

    किसी और ने नहीं

    बाँध रखा है

    तुमने ख़ुद को....वाह

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  3. बहुत खूब ,छोटी सी रचना बहुत कुछ कह गई..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी, सराहनीय अभिव्यक्ति । कम शब्दों का प्रयोग करते हुए सही राह दिखाई है आपने ।

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  5. आशा का संचार कराती कविता
    बहुत सुंदर
    बधाई

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  6. खोल दो बंधन,

    फैला दो बाहें,

    बहुत सुन्दर सृजन।

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