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शुक्रवार, 12 मार्च 2021

५४४. मिट्टी

 


मैंने मिट्टी को रौंदा,

और आगे बढ़ने लगा,

पाँवों से चिपक गई वह,

कहा, मुहब्बत है तुमसे.


मैंने उसे हाथों में उठाया,

सहलाया उसे प्यार से,

रंग भरे उसमें,

बहुत ख़ुश हुई मिट्टी,

उसने मुझे खिलौने दिए.

12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, मिट्टी ने खिलौने दिए , मिट्टी तो बहुत कुछ देती ही रहती । बहुत सुंदर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-03-2021) को    "योगदान जिनका नहीं, माँगे वही हिसाब" (चर्चा अंक-4005)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
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    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  3. क्या सुंदर भाव हैं, अप्रतिम कृति..

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