top hindi blogs

शनिवार, 20 मार्च 2021

५४६. शिकायत


पिता, मुझे नहीं पता था
कि तुम निकल पड़ोगे यात्रा पर,
मैं दौड़ा- दौड़ा गया स्टेशन तक,
तुम्हारी गाड़ी आ चुकी थी,
तुम बैठ चुके थे डिब्बे में,
मैंने खिड़की से झाँककर देखा,
तुमने हाथ हिलाया, ट्रेन चल दी.

पिता, क्या ऐसे भी कोई जाता है,
बिना कोई इत्तला दिए,
बिना कोई बातचीत किए,
ख़ासकर तब, जब यात्रा अंतिम हो.

12 टिप्‍पणियां:

  1. भावुक कर देने वाली हृदयस्पर्शी रचना। शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. मर्मस्पर्शी भावों से युक्त अंतस् छूती रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर।
    मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  4. थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने |

    जवाब देंहटाएं
  5. ओह , बहुत मार्मिक ...

    यूँ तो सबके टिकट कट चुके होते हैं , बस दिन और समय का पता नहीं होता .... कब ट्रेन सिटी दे बैठा ले ...

    जवाब देंहटाएं
  6. भावुक कर दियग इन लाइनों ने
    बहुत सुन्दर वर्णन किया है सर

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहद भावुक रचना , हृदय हृदयस्पर्शी

    जवाब देंहटाएं
  8. पिता, क्या ऐसे भी कोई जाता है,
    बिना कोई इत्तला दिए,
    बिना कोई बातचीत किए,
    ख़ासकर तब, जब यात्रा अंतिम हो.
    बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति ओंकार जी। ऐसे भी कोई लिखता है क्या??? निशब्द हूँ🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं