बहुत दिनों बाद
आज अवसर आया है
कि प्लेटफ़ॉर्म पर हूँ.
घंटी हो चुकी है,
ट्रेन बस पहुँचने ही वाली है,
पर अब जब रवानगी पास है,
तो दिल बहुत उदास है.
सोचता हूँ,
कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है,
वह ट्रेन जो पहुँचने ही वाली है,
मुझे मंज़िल तक ले जाएगी
या मंज़िल से दूर?
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को "चाँदनी भी है सिसकती" (चर्चा अंक-3994) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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Spice Money Login Thanks You.
जवाब देंहटाएंMunger News
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसदैव की तरह चिंतन लिए सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन.... यात्रा से पहले यह विचार तो मन में आता ही है.जहाँ जा रहे हैं क्या वही मंजिल है या वो जहाँ से जाया से जा रहा है.... विचारणीय....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कृति.मन को छू गई ..समय मिले तो ब्लॉग पर अवश्य भ्रमण करें..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ,
जवाब देंहटाएंकहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है,
वह ट्रेन जो पहुँचने ही वाली है,
मुझे मंज़िल तक ले जाएगी
या मंज़िल से दूर?
बढ़िया कविता...
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
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