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गुरुवार, 25 मार्च 2021

५४७.जनहित


मैं किसी के रोने से 

उतना नहीं डरता,

जितना उसके 

सिसकने से डरता हूँ. 


रोने को दबाने से 

सिसकी निकलती है, 

सिसकनेवाला आदमी 

ख़तरनाक हो सकता है,

दूसरों के लिए भी 

और अपने लिए भी. 


सिसकनेवाले आदमी को 

रोने के लिए उकसाना 

जनहित का काम है. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ओंकार जी,
    मन को छू गयी ये भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

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  2. ओह , कितनी भावुकता भर दी है ... तीक्ष्ण अवलोकन .. वाकई सिसकने वाला व्यक्ति बहुत घुट कर रोता है ....
    मर्म स्पर्शी रचना ...

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