तुममें वसंत भी है,
तुममें पतझड़ भी,
तुममें जाड़ा भी है,
तुममें बरसात भी.
तुममें ऐसे भी मौसम हैं,
जो न मैंने देखे हैं,
न सुने हैं.
इतने सारे मौसम
तुम लाती कहाँ से हो?
मैं तुम्हारे मौसमों को समझ लूँ,
तो तुम्हें भी समझ लूँ।
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मुझे वसंत पसंद है,
तुम्हें पतझड़,
मुझे बरसात पसंद है,
तुम्हें ठंड,
कितनी अलग हैं हमारी पसंद,
फिर भी मुझे तुम पसंद हो
और तुम्हें मैं.
**
जब मुझमें पतझड़ होता है,
तुममें वसंत,
जब मुझमें ठण्ड होती है,
तुममें बरसात,
हममें मौसम तो एक जैसे हैं,
पर उनका टाइमिंग अलग है.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ! सारी समस्या टाइमिंग के फ़र्क की वजह से ही तो होती है.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब !! हमेशा की तरह बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंwah!!! Aapki har kavita kitni sundar hoti hai!
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
वाह वाह! खूब कहा है
जवाब देंहटाएंप्रकीतात्मक अंजाद में गहरी बात ...
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