सुना है,
सड़कों को अच्छे लगते हैं
सरसों के खेत,
सिर पर रखे हुए
पानी के मटके,
घरों से उठते
धुएँ के गोले,
चबूतरे पर बैठकर
हुक्का गुड़गुड़ाते बूढ़े,
गलियों में दौड़ते
अधनंगे बच्चे,
पर किसी को परवाह नहीं
कि सड़कें क्या चाहती हैं,
सब उन्हें उधर ही ले जाते हैं,
जिधर पहले से ही सड़कें हैं.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अहा।
जवाब देंहटाएंकितना सुंदर भाव भरा है कविता में । बधाई ।
सपाट काली सड़कें भी क्या क्या कह जाती हैं ...
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