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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

६८४. सड़कें

 


सुना है,

सड़कों को अच्छे लगते हैं

सरसों के खेत,

सिर पर रखे हुए 

पानी के मटके,

घरों से उठते 

धुएँ के गोले,

चबूतरे पर बैठकर 

हुक्का गुड़गुड़ाते बूढ़े,

गलियों में दौड़ते 

अधनंगे बच्चे,

पर किसी को परवाह नहीं 

कि सड़कें क्या चाहती हैं,

सब उन्हें उधर ही ले जाते हैं,

जिधर पहले से ही सड़कें हैं.

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