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बुधवार, 21 दिसंबर 2022

६८६.आइसक्रीम

 


मैं चाहता था 

धीरे-धीरे, चूस-चूसकर 

आइसक्रीम खाना,

पर इस कोशिश में 

वह कब स्टिक से टूटी,

कब ज़मीन पर गिरी,

पता ही नहीं चला. 

**

पिघल गई है ज़िन्दगी 

मेरे देखते-देखते,

बस स्टिक बची है,

जिस पर कहीं-कहीं चिपकी है

थोड़ी-सी आइसक्रीम. 

**

मैं रोज़ ख़रीदता हूँ 

उस बच्चे से आइसक्रीम,

मुझे ख़रीदना तो अच्छा लगता है,

पर न जाने क्यों 

खाना अच्छा नहीं लगता. 

**

वह जो बच्चा 

मेरे मुहल्ले में 

आइसक्रीम बेचता है,

उसका भी मन करता है 

कि वह भी खाए 

कभी कोई आइसक्रीम.


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं रोज़ ख़रीदता हूँ

    उस बच्चे से आइसक्रीम,

    मुझे ख़रीदना तो अच्छा लगता है,

    पर न जाने क्यों

    खाना अच्छा नहीं लगता
    और उसी को खिलाते हैं उसी से खरीदी आइसक्रीम...
    बहुत बढ़िया
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. पिघल गई है ज़िन्दगी

    मेरे देखते-देखते,

    बस स्टिक बची है,

    जिस पर कहीं-कहीं चिपकी है

    थोड़ी-सी आइसक्रीम.
    बहुत ही सच जीवन संदर्भ लिखा है आपने । बधाई।

    जवाब देंहटाएं