मैं चाहता था
धीरे-धीरे, चूस-चूसकर
आइसक्रीम खाना,
पर इस कोशिश में
वह कब स्टिक से टूटी,
कब ज़मीन पर गिरी,
पता ही नहीं चला.
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पिघल गई है ज़िन्दगी
मेरे देखते-देखते,
बस स्टिक बची है,
जिस पर कहीं-कहीं चिपकी है
थोड़ी-सी आइसक्रीम.
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मैं रोज़ ख़रीदता हूँ
उस बच्चे से आइसक्रीम,
मुझे ख़रीदना तो अच्छा लगता है,
पर न जाने क्यों
खाना अच्छा नहीं लगता.
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वह जो बच्चा
मेरे मुहल्ले में
आइसक्रीम बेचता है,
उसका भी मन करता है
कि वह भी खाए
कभी कोई आइसक्रीम.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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bahut sundar
जवाब देंहटाएंमैं रोज़ ख़रीदता हूँ
जवाब देंहटाएंउस बच्चे से आइसक्रीम,
मुझे ख़रीदना तो अच्छा लगता है,
पर न जाने क्यों
खाना अच्छा नहीं लगता
और उसी को खिलाते हैं उसी से खरीदी आइसक्रीम...
बहुत बढ़िया
वाह!!!
बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंपिघल गई है ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंमेरे देखते-देखते,
बस स्टिक बची है,
जिस पर कहीं-कहीं चिपकी है
थोड़ी-सी आइसक्रीम.
बहुत ही सच जीवन संदर्भ लिखा है आपने । बधाई।
बहुत गहरी ... कमाल का भाव ...
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