मैं बच्चा था,
तो मुलायम था
आइसक्रीम की तरह,
बड़ा हुआ,
तो सख़्त हो गया.
अब मन करता है,
फिर से आइसक्रीम हो जाऊं,
पर इतना आसान नहीं होता
पत्थर का आइसक्रीम हो जाना,
उससे भी मुश्किल है
लोगों का यह मान लेना
कि कल तक जो पत्थर था,
आज आइसक्रीम हो गया है.
**
मैंने माँगा नहीं,
पर मुझे मिल गईं
दो-दो आइसक्रीम,
मैं सोचता रहा,
पहले कौन सी खाऊं,
सोचने-सोचने में पिघल गईं
दोनों आइसक्रीम.
**
मुझमें मिठास हो न हो,
उजियारा होना चाहिए,
मैं तैयार हूँ पिघलने को,
पर आइसक्रीम की तरह नहीं,
मोमबत्ती की तरह.
कल्पना के एक अलग ही स्तर पर ले जाती है आपकी कविता- ''अब मन करता है,
जवाब देंहटाएंफिर से आइसक्रीम हो जाऊं,
पर इतना आसान नहीं होता
पत्थर का आइसक्रीम हो जाना,
इससे भी मुश्किल है
लोगों का मान लेना
कि कल जो पत्थर था,
आज आइसक्रीम हो गया है. ''...अद्भुत लिखा ओंकार जी आपने
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
मुझमें मिठास हो न हो,
जवाब देंहटाएंउजियारा होना चाहिए,
मैं तैयार हूँ पिघलने को,
पर आइसक्रीम की तरह नहीं,
मोमबत्ती की तरह.
बहुत ही सुन्दर
आभार
सादर
एका एक बदलना मुश्किल है
जवाब देंहटाएंपर धीरे धीरे सब possible है / /
आपने बचपन कि 20 पैसे वाली आईसक्रिम कि याद दिला दी / / हृदय से धन्यवाद !
सुन्दर रचना !
प्रकाश फैलाने की उत्तम इच्छा
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
अब मन करता है,
जवाब देंहटाएंफिर से आइसक्रीम हो जाऊं,
पर इतना आसान नहीं होता
पत्थर का आइसक्रीम हो जाना,
उससे भी मुश्किल है
लोगों का यह मान लेना
कि कल तक जो पत्थर था,
आज आइसक्रीम हो गया है.
बहुत सुंदर....
आइसक्रीम से पत्थर बनने के पीछे भी वजह होती हैं पुनः आइसक्रीम बनने की वजह त़ मिले
सहु सुंदर सृजन।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ओंकार जी।आपकी सरल और सहज रचनाएँ बहुत मर्मस्पर्शी होती हैं 🙏
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