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मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

६८५. मौसम



तुममें वसंत भी है,

तुममें पतझड़ भी, 

तुममें जाड़ा भी है,

तुममें बरसात भी. 

तुममें ऐसे भी मौसम हैं,

जो न मैंने देखे हैं,

न सुने हैं. 

इतने सारे मौसम 

तुम लाती कहाँ से हो?

मैं तुम्हारे मौसमों को समझ लूँ,

तो तुम्हें भी समझ लूँ। 

**

मुझे वसंत पसंद है,

तुम्हें पतझड़,

मुझे बरसात पसंद है,

तुम्हें ठंड,

कितनी अलग हैं हमारी पसंद,

फिर भी मुझे तुम पसंद हो 

और तुम्हें मैं. 

**

जब मुझमें पतझड़ होता है,

तुममें वसंत,

जब मुझमें ठण्ड होती है,

तुममें बरसात,

हममें मौसम तो एक जैसे हैं,

पर उनका टाइमिंग अलग है. 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय

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  3. बहुत ख़ूब ! सारी समस्या टाइमिंग के फ़र्क की वजह से ही तो होती है.

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  4. बहुत ख़ूब !! हमेशा की तरह बहुत सुन्दर सृजन ।

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  5. wah!!! Aapki har kavita kitni sundar hoti hai!

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  7. प्रकीतात्मक अंजाद में गहरी बात ...

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