top hindi blogs

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

६७५. मुझे नहीं बनना आदमी

 


मैं पानी बनना चाहता हूँ

ताकि सूखे होंठों की प्यास बुझा सकूं,

मैं रोटी बनना चाहता हूँ

ताकि पिचके पेटों की भूख मिटा सकूं. 


मैं फूल बनना चाहता हूँ

ताकि सूने आंगन में महक सकूं,

मैं हवा बनना चाहता हूँ 

ताकि थके जिस्मों का पसीना सोख सकूं. 


मैं आंसू बनना चाहता हूँ 

ताकि बहा दूँ कोई जमी हुई पीड़ा,

मैं बादल बनना चाहता हूँ 

ताकि बरस जाऊं सूखी ज़मीन पर कहीं. 


मैं तितली बनना चाहता हूँ,

पक्षी बनना चाहता हूँ,

जुगनू बनना चाहता हूँ,

मैं कुछ भी बन सकता हूँ,

पर नहीं बनना मुझे आदमी.




8 टिप्‍पणियां:

  1. आदमी में आदमियत और इंसानियत गायब होने के कारण उसकी शाख गुम है 🙏😞

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(३१-१०-२०२२ ) को 'मुझे नहीं बनना आदमी'(चर्चा अंक-४५९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह री विडंबना ! ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति आदमी ख़ुद आदमी नहीं बनना चाहता ! शायद आदमी को ठेस लगे और बोध हो कि बेहतर है फूल,पानी,रोटी, बादल,आंसू बनना पर यह सब होकर भी आदमी अच्छा आदमी हो सकता है । बहुत सहज,सरल और स्पष्ट अभिव्यक्ति । अभिनंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना,आदमी ने जब अपनी पहचान,अपने गुण सब को दिए तो आदमी बनने से क्या लाभ!!मर्म स्पर्शी रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह क्‍या बात है....यूं तो एक आदमी बनने के लिए भावनायें चाहिए परंतु आपने भावनाओं को आदमी बनने की प्रक्रिया से भी ऊपर रखकर आपने नया आयाम दिया ...वाह ओंकार जी ..अद्भुत रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. पर आदमी हुए बिना यह सब बना ही नहीं जा सकता

    जवाब देंहटाएं