मैंने आँसुओं से कहा,
मुझ पर एक एहसान करना,
पलकों तक तो चले आए,
बाहर मत निकलना.
आँसू रुआंसे होकर बोले,
हमारा ख़ुद पर वश कहाँ,
न हम ढीठ हैं,न बहरे,
पर पलकों तक आ गए,
तो वापस नहीं जा सकते,
बाहर निकलना और बहना
हमारी मजबूरी है.
हाँ,अगर चाहो,
तो जीभ से कहो
कि थोड़ा-सा झूठ बोल दे,
कह दे
कि ये ग़म के नहीं,
ख़ुशी के आँसू हैं.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हाँ,अगर चाहो,
जवाब देंहटाएंतो जीभ से कहो
कि थोड़ा-सा झूठ बोले,
कह दे,
कि ये ग़म के नहीं,
ख़ुशी के आँसू हैं.
आँसुओं को परिभाषित करती मर्मस्पर्शी रचना ।
बहुत खूबसूरत,भावनाओं का सुंदर प्रवाह
जवाब देंहटाएंबाहर निकलना और बहना
जवाब देंहटाएंहमारी मर्ज़ी नहीं, मजबूरी है.
... सच बहते हुए को रोकना बहुत मुश्किल है । सराहनीय रचना ।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...👏👏👏
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