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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

६७१. आँसू

 


मैंने आँसुओं से कहा,

मुझ पर एक एहसान करना,

पलकों तक तो चले आए,

बाहर मत निकलना. 


आँसू रुआंसे होकर बोले,

हमारा ख़ुद पर वश कहाँ,

न  हम ढीठ हैं,न बहरे,

पर पलकों तक आ गए,

तो वापस नहीं जा सकते,

बाहर निकलना और बहना 

हमारी मजबूरी है. 


हाँ,अगर चाहो, 

तो जीभ से कहो   

कि थोड़ा-सा झूठ बोल दे,

कह दे

कि ये ग़म के नहीं,

ख़ुशी के आँसू हैं. 


 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. हाँ,अगर चाहो,
    तो जीभ से कहो
    कि थोड़ा-सा झूठ बोले,
    कह दे,
    कि ये ग़म के नहीं,
    ख़ुशी के आँसू हैं.
    आँसुओं को परिभाषित करती मर्मस्पर्शी रचना ।

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  3. बहुत खूबसूरत,भावनाओं का सुंदर प्रवाह

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  4. बाहर निकलना और बहना
    हमारी मर्ज़ी नहीं, मजबूरी है.
    ... सच बहते हुए को रोकना बहुत मुश्किल है । सराहनीय रचना ।

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  5. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...👏👏👏

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