दशहरे में जलता है
पुतला रावण का,
पर ज़रूरी नहीं
कि तीर चलाने वाला राम हो,
रावण भी जला सकता है
अपना पुतला कभी-कभी
ताकि कोई जान न पाए
कि वह राम नहीं, रावण है.
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बड़ी भीड़ थी इस बार मेले में,
पता ही नहीं चला,
कौन राम था, कौन रावण,
कौन जल रहा था,
कौन जला रहा था.
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मेले में जाना है,
तो तमाशा देखने जाना,
यह सोचकर मत जाना
कि रावण जलेगा,
भीड़ का क्या भरोसा
न जाने किसको जला दे.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ... लाजवाब...👍👍👍
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंउत्तम सृजन...
जवाब देंहटाएंभीड़ का विवेक खो जाता है .
जवाब देंहटाएंभीड़ का क्या भरोसा
जवाब देंहटाएंन जाने किसको जला दे.
.. बहुत सारगर्भित रचना।