वैसे तो रोटी का आकार
कुछ भी हो सकता है,
पर भूखे लोगों को भाती हैं
गोल-गोल रोटियाँ.
रोटी गोल होती है,
तो भ्रम पैदा होता है
कि उसका कोई छोर नहीं है.
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जिस तरह पी सकता है एक साथ
ऊँट कई दिनों का पानी,
काश कि खा पाता इंसान
कई दिनों की रोटियाँ
और हो जाता मुक्त
रोज़-रोज़ के झंझट से.
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गोल होती है रोटी
पृथ्वी की तरह,
पर बेहतर होती है पृथ्वी से,
उसे खाया जा सकता है,
वह घूमती भी नहीं है.
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (2-10-22} को "गाँधी जी का देश"(चर्चा-अंक-4570) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह !
जवाब देंहटाएंकाश कि खा पाता इंसान
जवाब देंहटाएंकई दिनों की रोटियाँ
पेट का मर्म जानकर ,दिल को छूती पंक्तियां
जय माता दी !
आपकी लिखी रचना सोमवार 3 , अक्टूबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत ही शानदार, भाव प्रवण सृजन।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंसच में कोई छोर नहीं... रोटी का।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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