जब तक मेरे घर में
कोई दीवार नहीं थी,
घर बड़ा-सा लगता था,
अब दीवारें बन गई हैं,
तो लगता है,
एक ही घर में
कई घर बन गए हैं.
***
मुश्किल नहीं है
घर में दीवारें बनाना,
मुश्किल है,दीवारों को हटाना,
मुश्किल है, घर को फिर से घर बनाना.
***
कैसा भी सीमेंट डालो,
कैसी भी ईंटें,
घर की दीवारें
कमज़ोर करती हैं घर को.
***
मैं तोड़ना चाहता हूँ दीवारें,
मुझे बड़ा घर चाहिए,
बड़े घर में कई
छोटे-छोटे घर नहीं.
***
उसने पुकारा मुझे
दीवार के उस पार से,
मैंने कुछ सुना ही नहीं।
छीन लेती हैं दीवारें
देखने की ही नहीं,
सुनने की भी ताक़त.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 18 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वास्तव में घरों के बीच बनी दीवारें संवेदनशील हृदयों को दुख ही देती हैं । बहुत संवेदनशील सृजन ।
जवाब देंहटाएंघर में बनी अनावश्यक दीवारें मन को आहत करती हैं ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-9-22} को विश्वकर्मा भगवान का वंदन" (चर्चा अंक 4555) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सार्थक लघु रचनाएं दीवारों की शानदार व्याख्या।
जवाब देंहटाएंएक घर में अनेक घर बन जाना बेहद दुखद होता है
जवाब देंहटाएंमार्मिक लेखन
सत्य ,सार्थक,हृदय को स्पर्श करने वाली रचना आदरणीय,सादर
जवाब देंहटाएंघर क़े बीच दीवारें घर को कई हिस्से में बाँट देती है. दीवारें घर में रहने वालों क़े बीच नहीं हों, ये जरुरी है. बहुत सार्थक संदेश देती रचना! --साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंबहुत दर्दनाक है दीवारों के पीछे का जीवन।
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