कब तक उबलते रहोगे
अंदर-ही-अंदर?
बहुत हो गया,
भगोने से निकलो,
बुझा दो वह आग,
जो तुम्हें जला रही है.
***
मैंने तो नहीं कहा था
कि मुझे चढ़ाओ चूल्हे पर,
अब तुमने चढ़ा ही दिया है,
तो मुझे भी देखना है
कि कितना जला सकती हो
मुझे जीते जी तुम.
***
बाद में कुछ नहीं होगा,
अभी साहस करो,
बाहर निकलो,
अंदर-ही-अंदर जलते रहे,
तो ख़त्म कर देगी
तुम्हें यह आग.
***
थोड़ा-सा सह लो,
जलना ज़रूरी है,
यह आग ही है,
जो निखारेगी तुम्हें,
यह आग ही है,
जो पहुँचाएगी तुम्हें
तुम्हारे एसेंस तक.
थोड़ा-सा सह लो,
जवाब देंहटाएंजलना ज़रूरी है,
यह आग ही है,
जो निखारेगी तुम्हें,
यह आग ही है,
जो पहुँचाएगी तुम्हें
तुम्हारे एसेंस तक.
सत्य कथन ! प्रेरक सृजन ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 26 सितम्बर ,2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सराहनीय प्रयास !
जवाब देंहटाएंछोटे से सृजन में गहन दर्शन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
दूध और आग के बीच सारगर्भित संवाद।
जवाब देंहटाएंसुदंर लेखन।
सत्य सार्थक भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंवाह…बहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंतपना पड़ता है जीवन में निरंतर।पर ये तपन दूध सरीखी हो तो आसान कहाँ होगी।बहुत शानदार प्रस्तुति ओंकार जी।🙏
जवाब देंहटाएंदूध हो या फिर सोना हो, या फिर इंसान हो, इन सबको अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए खुद तपना ही पड़ता है.
जवाब देंहटाएंथोड़ा-सा सह लो,
जवाब देंहटाएंजलना ज़रूरी है,
यह आग ही है,
जो निखारेगी तुम्हें,
यह आग ही है,
जो पहुँचाएगी तुम्हें
तुम्हारे एसेंस तक.
बहुत खूब,जलना कठिन है मगर आग में जल कर ही तो सोना भी कुन्दन होता है
शानदार सृजन 🙏
सारगर्भित संवाद । सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंगहन अर्थ लिए लाजवाब सृजन।