क्यों सिसकता रहता है हर वक़्त
मेरे घर का नल?
खुलकर रोता क्यों नहीं?
दहाड़ें मारकर रोए,
तो शायद कोई इलाज भी करवाए.
***
कुछ बोलता नहीं,
रोता ही रहता है
मेरे घर का नल,
वह कुछ कहता नहीं,
मैं कुछ समझता नहीं.
***
रात भर जगा रहता हूँ,
रो लेता हूँ कभी-कभी,
उचटती रहती है नींद
मेरे घर के नल की,
वह भी टपका देता है
एकाध बूँद पानी.
***
नल चू रहा है,
तो चूने दो थोड़ी देर,
अच्छा नहीं होता हमेशा
रोते को चुप कराना.
वाह
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 02 सितंबर 2022 को 'रोता ही रहता है मेरे घर का नल' (चर्चा अंक 4540) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
एक जड़,एक चेतन! पर दोनों की व्यथा एक-सी !
जवाब देंहटाएंमर्मांतक अभिव्यक्ति ओंकार जी 🙏
बेचारा नल ! बूँद-बूँद से सागर बनता है, क्या आपने यह नहीं सुना है, जब दुःख छोटा हो तभी उसका इलाज कराना ठीक है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!! एक बूंद ने जाने कितने भाव प्रगट कर दिए।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह! लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
बहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपका
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जवाब देंहटाएंबहने से मन का दर्द भी आसानी से निकल जाता है पर आसान नहीं जीवन में नल या नल जैसा हो जाना 🙏
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