वह इमारत आज फिर उदास है,
आज फिर कोई कूदा है उसकी छत से.
उस इमारत में कोई नहीं रहता,
वह बस कूदने के काम आती है,
इमारत का दिल बहुत धड़कता है,
जब कोई उसकी सीढ़ियाँ चढ़ता है.
इमारत चाहती है ज़मींदोज़ होना,
आसमान छूना पसंद नहीं उसे,
वह चाहती है, जहाँ वह खड़ी है,
कोई छोटी-सी झोपड़ी बने वहाँ ,
जिस पर से कोई कूद न सके,
कूद भी जाय, तो मर न सके.
वाह वाह!मार्मिक ।
जवाब देंहटाएंआपकी चिन्तन शैली अनूठी है । मर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंइमारत की चाहना सच्चे अर्थों में संवेदनशील है ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 4 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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मर्मस्पर्शी रचना । बधाई ।
जवाब देंहटाएंगजब!
जवाब देंहटाएंमर्म स्पर्शी सृजन।
बेहतरीन, दिल को भीतर तक हिला देने वाली रचना
जवाब देंहटाएंकौन चाहेगा वह जिंदगी नहीँ मौत के काम आए!
संवेदना की अनुपम मिसाल
सादर
कितनी सुंदर, मार्मिक रचना है!
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई यह कविता।
जवाब देंहटाएंकितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत भाव प्रवण और मर्म स्पर्शी।
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