इस दीवार पर,
जो कभी सूखी हुई थी,
अब सीलन के धब्बे हैं,
जैसे बहुत देर रोकर
पोंछ लिए हों किसी ने
गालों पर ढलके आँसू.
***
मैं घर छोड़कर गया था,
तो दीवार बिल्कुल सूखी थी,
अब इस पर सीलन के निशान हैं,
लगता है, मेरे पीछे से
बहुत रोई है दीवार.
***
इस सूखी दीवार में
हल्की-सी सीलन है,
इसे रोकना ज़रूरी है,
सिसकी को न समझो,
तो रुलाई फूट जाती है.
***
बहुत दिनों से यहाँ
कोई भी नहीं है,
पर यहाँ की दीवारें
सीलन से भर गई हैं,
लगता है,अच्छा नहीं लगा
घर को अकेले रहना.
***
उदास हो गया था घर,
मुझे भी अच्छा नहीं लगा
उसे छोड़कर जाना,
मेरे आँसू सूख गए हैं,
घर की दीवारें अभी गीली हैं.
***
थोड़ी-सी सीलन
दीवारों पर रहने दो,
अच्छा लगता है सोचकर
कि घर को मेरी ज़रूरत थी.
Photo: courtesy Dreamstime
हृदयस्पर्शीय सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंwah!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मर्मस्पर्शी सृजन !
जवाब देंहटाएंवाह! अनुपम अभिनव।
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं से भरपूर।
मर्मस्पर्शी सृजन !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर , हृदयस्पर्शी कविता। आभार।
जवाब देंहटाएंहृदय को सहलाती रचना।
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