मत उतरो उफनती नदी में,
उस पार कौन है,
जिसे तुम्हारा इंतज़ार है?
वह रौशनी जो तुम्हें दिख रही है,
कुछ और नहीं,भ्रम है,
अँधेरा ही अँधेरा है वहाँ -
लील लेने वाला अँधेरा .
मत उठाओ जोखिम,
मत उतरो उफनती नदी में,
उस पार कुछ भी नहीं है,
जो कुछ भी तुम्हारा है,
यहाँ इसी पार है.
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंगंभीर सीख देती सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब! बहुत नयापन है आपकी कविताओं में। देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर!!!
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
गहन भाव ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
जीवन नौका.. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंbahut sundar!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
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