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बुधवार, 24 अगस्त 2022

६६२.उस पार

 


मत उतरो उफनती नदी में,

उस पार कौन है,

जिसे तुम्हारा इंतज़ार है?


वह रौशनी जो तुम्हें दिख रही है,

कुछ और नहीं,भ्रम है, 

अँधेरा ही अँधेरा है वहाँ -

लील लेने वाला अँधेरा . 


मत उठाओ जोखिम,

मत उतरो उफनती नदी में,

उस पार कुछ भी नहीं है,

जो कुछ भी तुम्हारा है, 

यहाँ इसी पार है. 


10 टिप्‍पणियां:

  1. गंभीर सीख देती सुन्दर रचना ।

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  2. लाजवाब! बहुत नयापन है आपकी कविताओं में। देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर!!!

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  4. क्या कहने
    बहुत सुंदर रचना

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  5. जीवन नौका.. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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