उसने अपने जीवन में
कभी कुछ नहीं बोला,
जहाँ बोलना चाहिए था,
वहाँ भी वह चुप रहा.
कई बार उसे लगा
कि वह बोलने से ख़ुद को
रोक नहीं पाएगा,
पर उसने अपनी हथेली
अपने मुँह पर रख ली.
उसे अपने न बोलने पर
बहुत गुस्सा आता था,
पर उसने कुछ नहीं कहा,
उसे जितना गुस्सा आता था,
उससे ज़्यादा डर लगता था.
मौत से ठीक पहले भी
वह बोलने का साहस
जुटा नहीं पाया,
जबकि उसे पता था
कि उसके लिए बोलने का
यह आख़िरी मौक़ा था.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को "काव्य का आधारभूत नियम छन्द" (चर्चा अंक--4506) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया अपनी पोस्ट का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ओह! चुप्पी से उबरने का एक मौक़ा... कितना कुछ रहा होगा उस चुप्पी में.
जवाब देंहटाएंयह किसी की आपबीती है क्या ?
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह चिन्तन को प्रेरित करती सुन्दर कृति ॥
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन...।
जवाब देंहटाएंवाह वाह! अर्थदर्शी चिंतन।
जवाब देंहटाएंओह! चुप्पी की वेदना! बहुत खूब। सादर।
जवाब देंहटाएंकहने के बाद के आसन्न खौफ से चुप रहने की विवशता को दर्शाती उत्कृष्ट रचना! हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंडर इंसान को कितना चूप रहने विवश करता है यह बतलाती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमन की भीरुता ऐसा करवाती है देखा गया है उन लोगों में जिनको बचपन में अभिभावकों
जवाब देंहटाएंद्वारा कड़े अनुशासन में डरा कर रखा जाता है।
बहुत गहन हृदय स्पर्शी सृजन।
वर्तमान को साधती बेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंयह नहीं बोलेगा कभी चुप्पी साधली है इस ने।
सादर
जब तक मन में अभय न हो कुछ कहना कठिन होता है
जवाब देंहटाएंजो लोग आसानी से अपने मन की बातें कह देते हैं, वह नहीं समझ पाते चुप्पी के कारागार में बन्द रह कर न बोल काने का दुख
जवाब देंहटाएंशानदार कविता के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंडॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद
बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएंगहन हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंयह कविता नहीं मनोविज्ञान का दस्तावेज है।
जवाब देंहटाएं