दीपक,
तुमसे एक विनती है,
इस बार दिवाली में
कोई भेदभाव मत करना,
अट्टालिकाओं में ही नहीं,
झोपड़ियों में भी जलना.
बाग़ीचों और पार्कों में ही नहीं,
खेत-खलिहानों में भी जलना,
होटलों और बाज़ारों में ही नहीं,
गाँवों के चबूतरों पर भी जलना.
दीपक,
इस बार दिवाली में
कहीं और जलो, न जलो,
वहाँ ज़रूर जलना,
जहाँ न जाने कब से
अंधेरों का कब्ज़ा है.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 23 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-10-22} को "वीरों के नाम का दिया"(चर्चा अंक-4589) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
मंगलकामना के भावों से परिपूर्ण अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंएवमस्तु । ऐसा ही हो । मिट्टी का दिया अंधकार मिटाने को प्रतिबद्ध है । तमसो मा ज्योतिर्गमय । सीधी सरल ह्रदयस्पर्शी कविता ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 24 अक्टूबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२४-१० -२०२२ ) को 'दीपावली-पंच पर्वों की शुभकामनाएँ'(चर्चा अंक-४५९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंदीवाली की शुभकामनाएं
दीपक से इतना सुन्दर आग्रह सद्भावनाओं से भरा एक कवि मन ही कर सकता है।आभार आपका इस सार्थक रचना के लिए।
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव पर आपको सपरिवार हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🎊🎊🎉🎉🎀🎀🎁🎁🌺🌺♥️🌹🙏
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ l
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमंगल भावों का शुभ्र सृजन।
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