पिता,
तुमने ठीक नहीं किया
कि यूँ अचानक चले गए,
पूर्व सूचना देते,
थोड़ा बैठते,
बतियाते,
फिर चले जाते,
मैं रोकता नहीं तुम्हें,
रोकता भी,
तो तुम रुकते थोड़े ही?
पिता,
मैं रोक सकता तुम्हें,
तो ज़रूर रोक लेता,
तुम गए,
तो न जाने क्या-क्या चला गया,
मेरा बचपन चला गया,
मेरी जवानी चली गई.
पिता,
तुम क्या गए,
मैं अचानक बूढ़ा हो गया.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तुम गए,
जवाब देंहटाएंतो न जाने क्या-क्या चला गया,
मेरा बचपन चला गया,
मेरी जवानी चली गई,
तुम गए,
तो मैं अचानक बूढ़ा हो गया.
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी रचना,सादर नमन
दिल को छूने वाली पंक्तियाँ, जब तक बुजुर्गों का साया बना रहता है हर व्यक्ति दिल से बच्चा हो सकता है
जवाब देंहटाएंमर्म स्पर्शी रचना सार्थक सत्य को अभिव्यक्त करती हुई
जवाब देंहटाएंतुम गए तो जाने क्या-क्या चला गया ।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक पंक्तियाँ हैं ।
जैसे भाव हमारे शब्द आपके हों ।
वाकई, पिता कितना बड़ा संबल होते हैं, ये जाने के बाद ही पता चलता है ।
जवाब देंहटाएंपिता एक छतरी की तरह होते हैं...उनकी अनुपस्थिति सदैव सालती रहती है...🙏🙏🙏
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