मैंने कोई अपराध नहीं किया,
पर मैं कारागार में हूँ,
कभी छूटूँगा भी नहीं,
उम्र-क़ैद काट रहा हूँ.
कोई जज क्या करेगा?
कोई अदालत क्या करेगी?
सारे वक़ील निरुपाय हैं,
कोई रास्ता नहीं दिखता.
न कोई क़ानून काम आएगा,
न कोई दलील चलेगी,
कोई सुनवाई नहीं होगी,
न ही कोई फ़ैसला होगा.
कहने को तो मैं अपने घर में हूँ,
पर ध्यान से देखिए,
मैं आज़ाद नहीं हूँ,
मैं अपनी इमेज की क़ैद में हूँ.
दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।
जवाब देंहटाएंयह क़ैद खुद की बनायी हुई है तो इसे तोड़ना भी खुद को ही है, तब तो कोई समस्या ही नहीं है, जब चाहें बाहर निकल आएँ
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