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सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

६७४. बूढ़ा दीपक

 


यह बूढ़ा दीपक,

जो काला हो गया है,

जल-जल कर हुआ है,

कहीं-कहीं से टूट भी गया है,

यह ऐसा नहीं था,

जब कुम्हार ने इसे बनाया था. 

***

कोने में पड़ा है 

वह बूढ़ा दीपक,

जवान दीपक भूल गए हैं 

कि उसी ने रौशन किया था उन्हें,

जब वह जवान था. 

***

काँप रही है लौ 

उस बूढ़े दीपक की,

उसे नहीं चाहिए 

कोई तेल, कोई बाती,

उसके लिए बहुत है 

तुम्हारी हथेलियों की ओट. 

***

देखो,

कितना डरा-डरा सा है

वह बूढ़ा दीपक,

उसे कोने से उठा लो,

पंक्ति में रख दो. 


6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सृजन ! कोई दीपक वास्तव में कभी बूढ़ा हो ही नहीं सकता क्योंकि ज्योति सदा एक सी है

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<
    पुन: भेंट होगी..

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२६-१०-२०२२ ) को 'बस,अपने साथ' (चर्चा अंक-४५९२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    ढेरों शुभकामनाएं

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  5. समय की ताकत सबसे बड़ी है।जिसका समय चूक गया वह हाशिये पर चला जाता है। बूढ़ा दीपक भी समय की गर्दिश का शिकार हो गया ☹

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