यह बूढ़ा दीपक,
जो काला हो गया है,
जल-जल कर हुआ है,
कहीं-कहीं से टूट भी गया है,
यह ऐसा नहीं था,
जब कुम्हार ने इसे बनाया था.
***
कोने में पड़ा है
वह बूढ़ा दीपक,
जवान दीपक भूल गए हैं
कि उसी ने रौशन किया था उन्हें,
जब वह जवान था.
***
काँप रही है लौ
उस बूढ़े दीपक की,
उसे नहीं चाहिए
कोई तेल, कोई बाती,
उसके लिए बहुत है
तुम्हारी हथेलियों की ओट.
***
देखो,
कितना डरा-डरा सा है
वह बूढ़ा दीपक,
उसे कोने से उठा लो,
पंक्ति में रख दो.
सुंदर सृजन ! कोई दीपक वास्तव में कभी बूढ़ा हो ही नहीं सकता क्योंकि ज्योति सदा एक सी है
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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पुन: भेंट होगी..
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२६-१०-२०२२ ) को 'बस,अपने साथ' (चर्चा अंक-४५९२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंढेरों शुभकामनाएं
अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंसमय की ताकत सबसे बड़ी है।जिसका समय चूक गया वह हाशिये पर चला जाता है। बूढ़ा दीपक भी समय की गर्दिश का शिकार हो गया ☹
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