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गुरुवार, 23 सितंबर 2021

६०४. शिकायत



माँ,तुम्हारी हालत देखकर 

मुझे तरस आता है,

बहुत तकलीफ़ होती है,

थोड़ा गुस्सा भी आता है. 


आज क्यों मजबूर हो तुम,

क्यों खा रही हो 

दर-दर की ठोकरें,

क्या मिला तुम्हें प्यार लुटा के, 

तुम्हारा त्याग क्यों व्यर्थ गया?


माँ, तुम्हारा हाल मुझसे 

देखा नहीं जाता,

पर मैं कुछ कर नहीं सकती,

क्योंकि मैं तो हूँ ही नहीं,

मैं तो कभी जन्मी ही नहीं,

जन्म से पहले ही 

मुझे मौत दे दी गई, 

उनके इंतज़ार में, 

जिनको तुमने मर कर जीवन दिया,

जिन्होंने तुम्हें जीते जी मौत दी. 


माँ,आज अगर मैं होती,  

तो मेरी और तुम्हारी कहानी 

शायद कुछ और होती,

काश, मैं जन्म ले पाती।


6 टिप्‍पणियां:

  1. सच जिन्हें सोचते हैं कि वे हमारा सहारा होंगे वे जब दुर्गति करते हैं तो तब याद आती है वह गलतियां जो कभी नासमझी और बिना सोचे समझे की होती है

    मर्मस्पर्शी रचना .... अजन्में बच्चे के माध्यम से माँ की पीड़ा को बखूबी बताया है आपने

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 25.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. बहुत खूब मार्म‍िककव‍िता ओंकार जी, माँ,आज अगर मैं होती,

    तो मेरी और तुम्हारी कहानी

    शायद कुछ और होती,

    काश, मैं जन्म ले पाती।---सत्‍य

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  4. बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना!

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