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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

४३०.परिंदों से

'राग दिल्ली' में प्रकाशित मेरी कविता:

परिंदों!
मत इतराओ इतना
और भ्रम में मत रहना
कि यह दुनिया अब
हमेशा के लिए तुम्हारी हुई!

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