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रविवार, 4 अगस्त 2024

७७८. मुग़ालता

 


किसी मुग़ालते में मत रहो, 

कोई दुखी नहीं होगा 

तुम्हारे मरने पर,

सब परेशान हैं तुम्हारी बीमारी से. 

तुम मरोगे, तो सब कहेंगे,

‘अच्छा हुआ,

कष्ट से मुक्ति मिली.’


मुक्ति उन्हें भी मिलेगी,

जो पीछे छूट जाएंगे,

वे झूमेंगे-नाचेंगे,

ख़ुश नज़र आएँगे,

तुम देख सकते,

तो भ्रम में पड़ जाते 

कि यह क्या है, 

तुम्हारी शव-यात्रा या बारात? 



5 टिप्‍पणियां:

  1. सच है किसी के मरने से बहुत फर्क नहीं पड़ता बहुत लोगों को ,, हाँ ये बात जरूर है कि फर्क उसे पड़ता है जो उसके सहारे जिन्दा रहता है ,,
    बहुत अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. ओह्ह.... गहन अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ६ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. ये पंक्तियाँ खुद में झाँकने के लिए मजबूर कर रही है। इस सच से हालफिलहाल में ही गुजरा हूँ...
    ....
    .........
    ''किसी मुग़ालते में मत रहो,
    कोई दुखी नहीं होगा
    तुम्हारे मरने पर,
    सब परेशान हैं तुम्हारी बीमारी से.
    तुम मरोगे, तो सब कहेंगे,
    ‘अच्छा हुआ,
    कष्ट से मुक्ति मिली.’''

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