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मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कोरोना पर लिखी गईं मेरी 51 कविताओं का संकलन ‘मौन की आवाज़’ अब amazon पर उपलब्ध  है. इन कविताओं में सिर्फ़ मेरे ही नहीं, आप सभी के अनुभव हैं, क्योंकि कोरोना से कोई अछूता नहीं रहा. लाखों मज़दूरों का गांवों की ओर पलायन, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी, श्मशान-घाटों में क़तारें- मैंने हर पहलू को इन कविताओं में समेटने की कोशिश की है. उस समय की आशंकाएँ, अपेक्षाएँ, दरियादिली,ओछापन - सबकी झलक इन कविताओं में मिल जाएगी. 


कोरोना बीत चुका है, पर शायद उसे इतनी जल्दी भूल जाना ठीक नहीं है. हर त्रासदी बहुत कुछ सिखाकर जाती है. उसको भूल जाने का अर्थ उसकी सीख को भी भूल जाना होता है. त्रासदियाँ तो आती ही रहती हैं- कोरोना नहीं तो कुछ और. एक त्रासदी जो सिखाकर जाती है, वह दूसरी से लड़ने में हमारी मदद करती है. यह हमें आत्म-मंथन का मौक़ा भी देती है. त्रासदी में ही हमारे चरित्र का पता चलता है. जब सब कुछ ठीक चल रहा हो, तो हमें ख़ुद को और दूसरों को आजमाने का मौक़ा ही नहीं मिलता. 


उम्मीद है कि ये कविताएँ अपने पाठकों को इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी को जल्दी भूलने नहीं देंगी. ये हमें अपनी कमज़ोरियों की याद दिलाती रहेंगी और अपनी ताक़त की भी. ये हमें यह भी याद दिलाती रहेंगी कि त्रासदी कितनी भी बड़ी हो, उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. 


‘मौन की आवाज़’ कोरोना पर मेरी कविताओं का तीसरा संकलन है. पहला संकलन ‘जमी हुई ख़ामोशी’ और दूसरा ‘पत्तों पर अटकी बूँदें’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है. आशा है कि इन दो संकलनों की तरह यह संकलन भी आपको अच्छा लगेगा. इसे 49 रुपए में ख़रीदा जा सकता है। लिंक यह है-


https://www.amazon.in/dp/B0DDQ8DNZ3





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