मेरे घर में बहुत-सी किताबें हैं,
कुछ अधपढ़ीं, कुछ अनपढीं।
किताबें ख़रीदने का शौक़ है मुझे,
पर पढ़ने का नहीं,
अच्छी लगती हैं मुझे
अलमारियों में किताबें,
जैसे खिड़कियों पर परदे,
सेंटर टेबल पर गुलदान,
दीवारों पर पेंटिंग्स,
बालकनी में गमले।
मेरे घर में किताबों का दम घुटता है,
कभी-कभी वे कहती हैं,
हमें नहीं पढ़ना, तो न सही,
कम-से-कम खोलकर तो देखो,
हम भी कभी हवा में साँस लें,
हम भी कभी बाहर की दुनिया देखें।
मैं कोई जवाब नहीं देता,
वैसे तो मेरे घर में बहुत-सी किताबें हैं,
पर मुझे नहीं आता
किताबों से बात करना।
वाह... मेरा तो एक कमरा ही किताबों से भरा पड़ा है जब जरुरत पड़ता है तब पढ़ लेता हु लोग कहते क्यों करोगे इतने किताबो का..?
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपके घर में यदि बहुत सारी किताबें हैं तो ये आपकी सुरुचि का प्रतीक है, पढ़िए उन्हें और उनकी शिकायत दूर करें !
जवाब देंहटाएंकुछ लोगों का भी ऐसा ही है - वे भी पूछते हैं, जो बात नहीं करनी, तो घर में लाये क्यूँ। किताबों से बात नहीं कर पाना, एक ऐसे दोस्त को खोना है, जो पीठ दिखा कर भी, साथ ही देता है।
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