हमारा यह छोटा-सा फ़्लैट
तुम्हारे जाने के बाद
बहुत बड़ा लगता है,
तुम्हारा सामान तो उतना ही है,
पर लगता है,
बहुत जगह घेरती थी
तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी।
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बहुत साफ़ रहता है यह घर,
न कोई काग़ज़ फेंकता है,
न छिलका, न कुछ और,
तुम्हारे जाने पर जाना
कि इतनी सफ़ाई
मुझे पसंद नहीं है.
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तुम्हारे जाने के बाद
कुछ भी नहीं रहा पहले-सा,
घर तो वही है,
पर काटता बहुत है,
समझ में नहीं आता
कि पुराना घर है
या नया जूता?
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह! कम शब्दों में दिल को खोल कर रख दिया है, घर तो रहने वालों से ही बनता है
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बातें ... तमाम रचनाएँ बोलती हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ह्रदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंदिलकश!
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