हिंदी दिवस के अवसर पर मेरी कविता ‘हिन्दी की गुहार’. इसमें हिंदी के विकास के लिए आदान- प्रदान के महत्व को रेखांकित किया गया है.
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बंद मत रखो मुझे,
खुले में आने दो,
साँस लेने दो.
पहुँचने दो मुझ तक
हवाओं के झोंके,
बारिश की बूँदें,
सूरज की किरणें,
फूलों की ख़ुशबू ,
कोयल के गीत.
जानता हूँ मैं
कि यह तुम्हारा प्यार है,
जो मुझे बाँधता है,
पर वह प्यार ही कैसा,
जो जान लेकर माने,
ज़रा सोचकर देखो,
मुझे बचाने के लिए
तुम जो कर रहे हो,
वही तो मार रहा है मुझे.
मुझे ख़ुश रखना है,
फलते-फूलते देखना है,
तो दूसरों को मुझसे,
मुझे दूसरों से मिलने दो,
समय के साथ चलने दो,
बाँधो मत, मुझे बहने दो
बाँधों मत मुझे बहने दो...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन, सच इसे खुला छोड़ना ही होगा मिलजुल कर पहचान बनानी होगी।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌹
बहुत सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहिन्दी तो शुरू से ही अन्य भाषाओं के शब्द अपनाती आ रही है, पर यह कभी समाप्त न होने वाली यात्रा है
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
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