(कुछ दिनों पहले एक दोस्त के 18-वर्षीय इकलौते बेटे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.
उसी का थोड़ा-सा दर्द इन कविताओं में सिमट आया है.)
बहुत दिन हुए,
वह दिखा ही नहीं,
जब गया था,
तब कहाँ पता था
कि वह दिखेगा ही नहीं?
***
वैसे तो मैं जानता हूँ
कि मौत के बाद
कोई दिखता नहीं है,
पर तुम गए,तो मैंने जाना
कि नहीं दिखना क्या होता है.
***
काश ऐसा होता
कि मौत के बाद भी
कोई होली-दिवाली आ जाता,
कुछ रंग भर जाता,
थोड़ी रौशनी कर जाता.
***
मौत,
हमने सोचा था
कि हम हमेशा साथ रहेंगे,
क्या बिगड़ जाता जो तुम
मुझसे थोड़ा पहले मिल लेती,
उससे थोड़ा बाद में?
***
मौत,
तुम कभी तो आओगी,
कभी तो मिलोगी मुझसे,
मुझे भी मिलना है तुमसे,
बहुत-सी शिकायतें जमा हैं.
***
एक कच्चा फल टूटा,
मैं जानता था
कि हवाओं का दोष नहीं था,
न ही पत्थर चलाया था किसी ने,
पर उसका गिरना मुझे
उतना बुरा नहीं लगा,
जितना अपना नहीं गिरना.
***
मैं सहन कर लेता,
तुमसे कभी न मिलना,
पर कैसे सह सकूंगा
तुमसे इस कारण नहीं मिलना
कि तुम हो ही नहीं?
मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति । नमन🙏
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ,निःशब्द हूँ ।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नि:शब्द हूँ
जवाब देंहटाएंइससे परिचित हूँ
ओह , दुःखद ।
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका गहन भाव लिए हुए ।
पर उसका गिरना मुझे
जवाब देंहटाएंउतना बुरा नहीं लगा,
जितना अपना नहीं गिरना.
नियति पर वश कहाँ चलता है किसी का...
जाने कब कौन गिरे कौन उठे..
बहुत मार्मिक सृजन।
मर्म को छूते हैं आपके शब्द ... निःशब्द ...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी !!
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