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मंगलवार, 13 जून 2023

७१८. तुम यूं घुल गई



तुम यूं घुल गई मुझमें

जैसे कविता में घुल जाते हैं शब्द,

कभी-कभी मुझे लगता है 

कि कुछ कमी थी शब्दों में,

पर कैसे हटाऊँ?

किसी एक को भी हटाऊँ,

तो बिखर जाएगी पूरी कविता. 

**

तुम यूं घुल गई मुझमें 

जैसे चांदनी घुल जाती है 

झील के पानी में,

बड़ी अच्छी रही रात,

पर सुबह देखा,

तो चाँद ग़ायब था,

अच्छा नहीं लगा देखकर,

तुम घुली रहा करो मुझमें,

चाहे सुबह हो या शाम,

दिन हो या रात.


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. नमस्ते,

    आपकी रचना चर्चा मंच के अंक

    'चार दिनों के बाद ही, अलग हो गये द्वार' (चर्चा अंक 4668)

    में सम्मिलित की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं।

    सधन्यवाद।

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  3. दिन में भी रात हो जाये गर तो फूल कब खिलेंगे,
    कभी चाँदनी तो कभी रोशनी बन कर सूरज की
    हर कदम हमदम संग रहेंगे

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  4. बहुत सुंदर रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ

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