तुम यूं घुल गई मुझमें
जैसे कविता में घुल जाते हैं शब्द,
कभी-कभी मुझे लगता है
कि कुछ कमी थी शब्दों में,
पर कैसे हटाऊँ?
किसी एक को भी हटाऊँ,
तो बिखर जाएगी पूरी कविता.
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तुम यूं घुल गई मुझमें
जैसे चांदनी घुल जाती है
झील के पानी में,
बड़ी अच्छी रही रात,
पर सुबह देखा,
तो चाँद ग़ायब था,
अच्छा नहीं लगा देखकर,
तुम घुली रहा करो मुझमें,
चाहे सुबह हो या शाम,
दिन हो या रात.
बहुत सुंदर उच्च भाव
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 15 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना चर्चा मंच के अंक
'चार दिनों के बाद ही, अलग हो गये द्वार' (चर्चा अंक 4668)
में सम्मिलित की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं।
सधन्यवाद।
दिन में भी रात हो जाये गर तो फूल कब खिलेंगे,
जवाब देंहटाएंकभी चाँदनी तो कभी रोशनी बन कर सूरज की
हर कदम हमदम संग रहेंगे
बहुत सुंदर रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य पंक्तियां
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