मैंने तुम्हें कविताओं में सोचा,
कविताओं में लिखा,
कविताओं में पढ़ा,
कविताओं में सुना,
मैंने तुम्हें कविताओं में देखा,
कविताओं में छुआ.
मैं रोज़ तुम्हारे साथ रहा,
पर तुम्हें जाना कविताओं में,
मैंने कविताओं से बाहर
कभी नहीं सुनीं तुम्हारी साँसें,
तुम्हारी धड़कनें,
कविताओं से बाहर
कभी महसूस नहीं की
तुम्हारी ख़ुशबू.
बहुत हृदय स्पर्शी कविता। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (11-06-2023) को "माँ की ममता" (चर्चा अंक-4667) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कविता में प्रेम और प्रेम में कविता समाहित हो जाय तो फिर जिंदगी खुशगवार हो जाय
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita
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