बहुत सोच-समझ कर,
बहुत ध्यान से
मैंने तुम पर कविता लिखी,
जैसे कोई सामने बिठाकर
किसी का चित्र बनाये.
मैं बुरा कवि नहीं हूँ,
पर मैंने जो कविता लिखी,
उस में तुम पूरी नहीं आ पाई.
मैं तुम्हारे बारे में कभी
सही तरह बता ही नहीं पाता,
कभी कुछ, तो कभी कुछ
रह ही जाता है.
तुम्हारा होना प्रमाण है
कि शब्दों की भी सीमा है.
क्या बात कह दी, शब्दों की सीमा भी है, वाह
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा.....
जवाब देंहटाएंहमने पड़ा.....
इसे सभी पड़े......
इस लिये आप की रचना......
दिनांक 25/06/2023 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है.....
इस प्रस्तुति में.....
आप भी सादर आमंत्रित है......
क्या खूब लिखा आपने, एक लाइन में जाने क्या क्या कह दिया "तुम्हारा तुम्हारा होना प्रमाण है
जवाब देंहटाएंकि शब्दों की भी सीमा है. "
वाह!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात...👌👌👌👌
🙏🙏🙏🙏
बहुत बढिया ओंकार जी।शब्दों की सीमा होती है परभावों का आकाश अनंत।कोई जब बहुत खास हो तो उनके लिए ये सीमित शब्दावली बहुत छोटी पड़ जाती है।हमेशा की तरह लाजवाब और सरल -सादी रचना 🙏
जवाब देंहटाएंएक रहस्य है जीवन जो खुलता है नहीं, युगों से कवि प्रयास ही तो कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंशब्दों में समेटना कहाँ आसान होता है ...
जवाब देंहटाएंsunder
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