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सोमवार, 3 जुलाई 2023

७२२. झुर्रियां



झुर्रियां भी अजीब होती हैं,

उजाले में देखो, तो चुप रहती हैं, 

अंधेरे में देखो,

तो दिखती नहीं,

पर सिसकती बहुत हैं. 

***

उसकी आंखों की कोरों में 

जो आंसू चमकते हैं, 

न झुर्रियों में अटकते हैं,

न नीचे गिरते हैं,

फिर जाते कहां हैं?

***

झुर्री सिर्फ़ लकीर नहीं होती, 

भाषा भी होती है, 

हर झुर्री किसी से 

कुछ कहना चाहती है, 

पर उसे समझने के लिए 

वह भाषा जानना ज़रूरी है. 

***

उसके खाने-पीने,

कपड़े-लत्ते,

रहने-सोने का ख़याल रखना,

पर यह भी ख़याल रखना 

कि उसके चेहरे पर 

उतनी ही झुर्रियां हों,

जितनी उसकी उम्र में होनी चाहिए. 

***

किसी वैद्य से मैंने जाना 

कि चेहरे पर झुर्रियां 

कम खाने से नहीं,

कम बोलने से पड़ती हैं.


7 टिप्‍पणियां:

  1. उसका रहने-सोने,खाने-पीने
    का ध्यान रखना मगर यह भी
    ध्यान रखना कि उसके चेहरे पर
    उतनी ही झुर्रियां हों,
    जितनी उसकी उम्र में होनी चाहिए.
    बेहतरीन सोच के साथ लाजवाब सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 जुलाई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  3. झुर्रियों की भाषा !
    अपनी बात न रख पाने की घुटन से उपजी झुर्रियाँ घुट कर ही रह जायेंगी ...
    बहुत ही चिंतनपरक
    लाजवाब सृजन।

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  4. झुर्री सिर्फ़ लकीर नहीं होती,

    भाषा भी होती है,

    हर झुर्री किसी से

    कुछ कहना चाहती है,

    पर उसे समझने के लिए

    वह भाषा जानना ज़रूरी है.
    मार्मिक रचना !

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  5. बहुत सुन्दर !
    मैं तो बहुत ज़्यादा बोलता हूँ. मैंने बोलने की ही तनख्वाह पाई थी और अब उसी की पेंशन भी खा रहा हूँ.
    सवाल यह उठता है कि इतना ज़्यादा बोलने के बावजूद मेरे चेहरे पर झुर्रियां क्यों पड़ीं?

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  6. बहुत भावपूर्ण , मर्मस्पर्शी रचना !

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