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सोमवार, 17 जुलाई 2023

७२३.कविता और ज़िन्दगी

 


किसी नदी की तरह

पहाड़ों से उतरती है 

मेरी नई कविता,

निर्मल,अल्हड़,मस्त. 


हरे-भरे मैदानों से गुज़रती है,

तो लगता है,

पहुंच जाएगी सागर तक,

पा लेगी अपनी मंज़िल,

पर रास्ता रोक लेता है 

कोई विशाल मरुस्थल,

जहां सूखती जाती है वह,

आख़िर दम तोड़ देती है नदी. 


ऐसे ही खो जाती हैं 

हंसती-खेलती ज़िंदगियां,

नहीं पहुंच पातीं 

अपने अंत तक कभी.



4 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 जुलाई 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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  2. अंत का न होना शायद अच्छा ही है ... जीवन चलता रहेगा ...

    जवाब देंहटाएं