उसने होली में मुझ पर
गुब्बारा कुछ ऐसे फेंका
कि उसका निशाना लग भी गया
और नहीं भी.
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वह जो खिड़की के पीछे से
गुब्बारे फेंकती है,
डरती भी है,
निडर भी है.
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हमेशा की तरह
इस बार भी होली में
गुब्बारा नहीं लगा मुझे,
कहीं ऐसा तो नहीं
कि तुम हर बार
जान-बूझकर निशाना चूक जाती हो.
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तुमने मुझ पर गुब्बारा फेंका,
मैं सिर से पाँव तक भीग गया,
फिर भी न जाने क्यों
मुझे ऐसा लगा
कि गुब्बारे में पानी कम था.
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इस बार होली में
अजीब नज़ारा देखा,
गुब्बारा एक चला,
पर घायल कई हो गए.
बहुत सुंदर। शुभ होली।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मुग्ध करती रचना, होली की शुभकामनाएं आदरणीय।
जवाब देंहटाएंवाह!क्या बात है कुछ भाव छुपाए सरस रचनाएं।
जवाब देंहटाएंवाह! होली पर ग़ुब्बारे फोड़ने का मोहक अंदाज़!
जवाब देंहटाएंआप अच्छा लिखते है ।
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