पिछली होली में तुमने
जो रंग डाला था,
अभी उतरा नहीं है,
जो सबको दिखता है,
तुम्हें क्यों नहीं दिखता?
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इस बार होली में गुझिया बनाओ,
तो उसमें चीनी मत डालना,
डालो, तो ख़ुद मत खिलाना,
मुझे मीठा पसंद है,
पर इतना ज़्यादा भी नहीं.
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मैं तुम पर रंग कैसे डालूं,
तुम्हें एलर्जी हो गई तो?
मैं तुम पर पानी कैसे डालूं,
तुम्हें ज़ुकाम हो गया तो?
सोचता हूँ, कुछ भी न डालूं,
पर तुम्हें ग़लतफ़हमी हो गई तो?
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इस बार होली में
कोई गहरा रंग लगाना,
वह रंग ही क्या,
जो दिवाली तक उतर जाए?
सरलता के साथ गहन चिन्तन उकेरती सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५ -०३-२०२३) को 'कुछ रंग आपस में बांटे - --'(चर्चा-अंक -४६४४ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपके लिखने का तरीका अच्छा है । कम शब्दों में गहराई से लिख देते है।
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