सुबह नींद खुली,
तो देखा, वह सो रही थी,
उसके चेहरे पर मुस्कान थी,
मासूम-सी लगी वह मुझे.
याद नहीं आता मुझे
कि मैं कभी उससे पहले जागा,
मुझे बेड टी देना,
मेरा टिफ़िन तैयार करना,
समय पर ऑफिस भेजना,
सारी ज़िम्मेदारी उसी की तो थी.
कभी पहले नींद खुली भी,
तो वक़्त कहाँ था कि देखता,
वह सोते में कैसी लगती है.
आज पहली बार मैंने देखी
उसके चेहरे पर बेफ़िक्री,
आज पहली बार मैंने देखा
उसे सुबह देर तक सोते,
सोचता हूँ, कितना अच्छा होता
अगर मैं पहले रिटायर हो जाता.
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंजी भागदौड़ भरी ज़िंदगी में अपने लोगों को ठीक से समय भी नहीं दे पाते हैं । सुंदर सृजन आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसुकून.....!
जवाब देंहटाएंसहज अनुभूति. बेशकीमती लम्हा. वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति ओंकार जी।साधारण को असाधारण बनाना कोई आपसे सीखे।🙏
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