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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

६४६.घर


 

अब छोड़कर जा रहा हूँ 

मैं यह मकान, यह शहर ,

पर जब शाम होने लगे,

तो घर में दिया जला दिया करना. 


घर में कोई हो,न हो,

रौशनी ज़रूर होनी चाहिए, 

रौशनी हो, तो भ्रम बना रहता है 

कि घर में कोई रहता है, 

घर को भी लगता है 

कि अँधेरे में किसी ने उसे

अकेला नहीं छोड़ा. 


7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!
    सुन्दर सीख देती बहुत ही सुन्दर रचना ।

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  2. ख़ाली मकान रोशनी की
    मुर्दा-सी परछाईंयो से मन बहलायेगा
    जाने वाले के ग़म में
    एक दिन वो भी खंडहर हो जायेगा।
    -----
    सादर।

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  3. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति मानव मन की!! घर जड़ है इन्सान की।पलायनवादी होने के कारण चाहे वह कहीं भी चला जाये,घर की चिन्ता साथ जाती है।घर में रहने वाले लोगों की हँसी-खुशी ही तो घर की धड़कन होती है।🙏🙏

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