अब छोड़कर जा रहा हूँ
मैं यह मकान, यह शहर ,
पर जब शाम होने लगे,
तो घर में दिया जला दिया करना.
घर में कोई हो,न हो,
रौशनी ज़रूर होनी चाहिए,
रौशनी हो, तो भ्रम बना रहता है
कि घर में कोई रहता है,
घर को भी लगता है
कि अँधेरे में किसी ने उसे
अकेला नहीं छोड़ा.
वाह!बहुत खूब ओंकार जी ।
बहुत सुंदर रचना
वाह!!!सुन्दर सीख देती बहुत ही सुन्दर रचना ।
ख़ाली मकान रोशनी की मुर्दा-सी परछाईंयो से मन बहलायेगाजाने वाले के ग़म मेंएक दिन वो भी खंडहर हो जायेगा।-----सादर।
बहुत ख़ूब
वाह ! मन को छूती सुंदर रचना।
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति मानव मन की!! घर जड़ है इन्सान की।पलायनवादी होने के कारण चाहे वह कहीं भी चला जाये,घर की चिन्ता साथ जाती है।घर में रहने वाले लोगों की हँसी-खुशी ही तो घर की धड़कन होती है।🙏🙏
वाह!बहुत खूब ओंकार जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीख देती बहुत ही सुन्दर रचना ।
ख़ाली मकान रोशनी की
जवाब देंहटाएंमुर्दा-सी परछाईंयो से मन बहलायेगा
जाने वाले के ग़म में
एक दिन वो भी खंडहर हो जायेगा।
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सादर।
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंवाह ! मन को छूती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक अभिव्यक्ति मानव मन की!! घर जड़ है इन्सान की।पलायनवादी होने के कारण चाहे वह कहीं भी चला जाये,घर की चिन्ता साथ जाती है।घर में रहने वाले लोगों की हँसी-खुशी ही तो घर की धड़कन होती है।🙏🙏
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